प्राचीन महावीर मंदिर खुशाला शोघी शिमला

प्राचीन महावीर मंदिर खुशाला शोघी शिमला KHUSHALA HANUMAN MANDIR HISTORY IN HINDI
प्राचीन महावीर मंदिर खुशाला
प्राचीन हनुमान मन्दिर शोघी, यंहा स्वयं बस्ते हैं हनुमान Khushala Hanuman Mandir History
शोघी से ठीक नीचे सड़क मार्ग से लगभग आठ किलोमीटर की दूरी पर महावीर हनुमान का अतिप्राचीन स्थान है स्थानीय गुंबद शैली में चूना सुर्खी से निर्मित इस मंदिर मे चिकल से राधा कृष्ण की पूजा की जाती है, प्रत्यक्ष प्रमाण स्वरुप राधा कृष्ण की प्राचीन मूर्तियां आज भी विराजमान है यही कारण है कि मंदिर को ठाकुरद्वारा के नाम से पुकारा जाता है, लोकमत के अनुसर एक समय ये ठाकुरद्वारा ऊंचे शिखर पर स्थित था.
एक जनश्रुति के अनुसर त्रेता युग मे हनुमान जी संजीवनी बूटी लेकर इस शिखर पर रुके तो उनके पद प्रहार से ये पर्वत नीचे गहरी खाई मे धस गया वही बाबा जानकीदास जी ध्यानस्थ उन्होन महावीर के चरण पकड़ कर प्रार्थना की हे महावीर अपने भगवान श्री राम की कार्य सिद्धि के क्रम मे यहां विश्राम करते हुए मुझे दर्शन देकर आनंदित किया, आप की कृपा से ये स्थान सिद्ध स्थल हो गयाकृपा करके आप सदा के लिए यहां मूर्तिमान के रूप में विराजमान रहेंगे ताकि यहां आने वाले व्यक्ति को आनंद और कुशलता प्राप्त होती रहे महावीर हनुमान ने बाबा जानकीदास की प्रार्थना सुन ली, इसी आधार पर पूरे परिक्षेत्र का नाम खुशाला पड़ा.
महावीर हनुमान की दो विशाल मूर्तियां बना कर स्थापित की गईं, ये दोनो विशाल मूर्तियाँ जिनसे एक पश्चिम मुखी और दुसरी दक्षिण मुखी है, जो आज भी जनमानस की आस्था का केंद्र बनी हुई है, वर्तमान गुंबददार शैली मंदिर का निर्माण 250 वर्ष पूर्व तया जाता है जिसमें प्राकृतिक रंगो से बन गई पहाड़ी और कांगड़ा चित्रकला शैली की पारंपरिक चित्रावली आज भी अपनी मूल चमक बरकरार रखे हुए है जो हमारी सांस्कृतिक धरोहर के उत्कृष्ट नमुने हैं.
यहां स्थित अनेक साधु संतो की समाधियों से प्रमाण होता है, कि यह स्थान सिद्ध संतो का पारंपरिक केंद्र है, और यही कारण गांव का नाम डेराजमातिया अरथत साधु संतो की जमतो का डेरा पड़ा लोगो की अघात आस्था के कारण दूर-दूर से लोग ज्येष्ठ एवं कार्तिक मास में अपनी फसल का प्रथम भाग पहले यहां अर्पित करते हैं, लोक विश्वास है कि यहां लोगों की मन्नतें पूरी होती हैं और ओपरे आदी से भी छुटकारा मिलता है, रियासत काल में क्योंथल रियासत के शासको ने अपने इस्ट मान्ते हुए इसको विकसित किया और साधु संतो को पूजा अर्चना के लिए नियत किया कलांतर में ठाकुरद्वारा पर पीढी दर पीढी पूजा करने वाले संतो का वर्चस्व रहा, 1952 में कुछ विवाद के कारण सरकारी प्रवक्ता ने स्थान लिगो की समिति बनाकर और उनको ठाकुरद्वारा मंदिर की व्यवस्था उन्हें दे दी, सितंबर 2007 में हिंदू धार्मिक एवं पूर्वविन्यास अधिनियम 1984 के अंतरगत मंदिर का नियासीकरण हुआ परंतु जनकांशा के अनुरूप ने फरवरी 2009 से इसको पुन: स्थानिये लोगो को दे दिया, गत 25 वर्ष से महंत आनंद दास जी पूजा अर्चना के दयितव का निर्वाहन कर रहे हैं, राधाअष्टमी, जन्माष्टमी, हनुमान जयंती, शिवरात्रि, आदि हिंदू पर्वों पर यहां भव्य योजना एवं भंडारे होते हैं, प्राचीन मंदिर के अतिरिकत अब शिव मंदिर, धूना सत्संग कक्ष एवं भंडारा कक्ष का भी निर्माण किया गया है अगामी विस्तार योजना विचाराधीन है.
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