Himachal : सतलुज कैचमेंट में एक साल में बनीं 52 नई झीलें
Himachal : सतलुज कैचमेंट में एक साल में बनीं 52 नई झीलें, सैटेलाइट मॉनिटरिंग में हुआ खुलासा
सैटेलाइट से की गई मॉनिटरिंग में इसका खुलासा हुआ है। 2022 में जहां 414 झीलें थीं, वहीं 2023 में इनकी संख्या 466 पहुंच गई है।
पिछले एक साल में सतलुज कैचमेंट में 52 नई झीलें बन गईं। सैटेलाइट से की गई मॉनिटरिंग में इसका खुलासा हुआ है। 2022 में जहां 414 झीलें थीं, वहीं 2023 में इनकी संख्या 466 पहुंच गई है। राज्य जलवायु परिवर्तन केंद्र शिमला ने अध्ययन करने के बाद इसकी रिपोर्ट इसी माह जारी की है। ये झीलें जलवायु परिवर्तन से लगातार पिघल रहे ग्लेशियरों के कारण बनी हैं।
एआरएस-आरएस2 एएवीआईएफएस उपग्रहों के सैटेलाइट से मिले डाटा से इनका अध्ययन किया गया है। अध्ययन में पाया गया है कि 2022 की तुलना में सितंबर 2023 तक मौसमी झीलों की तादाद 414 से बढ़कर 466 हो गई है। बढ़ते तापमान और मौसम में बदलाव के कारण ऊपरी हिमाचल के ग्लेशियर करीब 30 सेंटीमीटर प्रति वर्ष की गति से पिघल रहे हैं। यह अध्ययन सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड के आपदा से निपटने की तैयारी को लेकर योजना का हिस्सा है, जो सतलुज नदी के मोरेन डैमड हिमनदीय, झीलों, जल सांकेतिकों की धारा का मूल्यांकन करने के लिए किया गया है।
यह अध्ययन 2009 से नियमित रूप से प्रत्येक वर्ष गर्मियों के मौसम में अप्रैल से अक्तूबर और नवंबर के दौरान किया जाता है। अध्ययन में विशेषज्ञों ने 2023 के अप्रैल से नवंबर तक 22 एडवांस वाइड फील्ड सेंसर आंकड़ों का उपयोग किया। उपग्रह डाटा से कुल 412 झीलों के आकार और जलस्तर की मैपिंग कर ली गई है, जिनमें 229 छोटे, 103 मध्यम और 80 बड़ी झीलें हैं। बेसिन के आधार पर सितंबर 2023 में 466, स्पीति बेसिन में झीलों की कुल संख्या 2022 में 58 और 2023 में 67 थी।
ऊपरी सतलुज बेसिन में 2022 में 297, 2023 में 341 झीलें बनीं और निचले सतलुज बेसिन में 58 की तुलना में 59 झीलें बनी थीं। इसके अलावा कुछ बढ़ी हुई झीलों की पहचान तो की गई है, लेकिन उनका कितना आकार बढ़ा, इसका अभी अंदाजा ही लगाया जा रहा है। रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि झीलों की संख्या के साथ उनके आकार में भी वृद्धि हुई है। पहले से मौजूद झीलों के क्षेत्रफल में 2022 से करीब 5 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
पर्यावरणीय खतरों को समझने में मिलेगी मदद
हमें ग्लेशियरों और झीलों के महत्व को समझने की आवश्यकता है। दूरसंचार तकनीक ने पर्यावरणीय परिवर्तनों को समझने में मदद की है। अध्ययन से बर्फबारी में कमी, ग्लेशियरों के पिघलने की तेज रफ्तार और खतरों को समझने में सहायता मिल सकती है। इससे पर्यावरणीय बदलावों के लिए हमारी जागरूकता बढ़ती है और समाधान ढूंढने में मदद मिल सकती है। दूरसंचार तकनीक का उपयोग करके हम वैज्ञानिक और तकनीकी दृष्टिकोण से इस समस्या का समाधान ढूंढ सकते हैं जो हमारे पर्यावरण और समुद्री जीवन के लिए जरूरी है।
-एस रंधावा, प्रधान वैज्ञानिक अधिकारी, जलवायु परिवर्तन केंद्र, शिमला