सागौन का अंत: रामनगर-टनकपुर वन क्षेत्र में कटान तेज, नई प्रजातियों के पौधे लगेंगे

सागौन की सत्ता समाप्त: रामनगर से टनकपुर तक फैले इन पेड़ों के जंगल का कटान तेज, विभिन्न प्रजाति के पौधे लगेंगे
हिंदी टीवी न्यूज़, Published by: Megha Jain Updated Thu, 15 May 2025
वन प्रभाग तराई पूर्वी, तराई पश्चिमी, तराई केंद्रीय, हल्द्वानी, रामनगर और नैनीताल में फैले सागौन के विशाल जंगल को हटाने की कवायद तेज कर दी जा चुकी है। वर्किंग प्लान में इसे शामिल किया गया तो कटान भी तेज है।
उत्तराखंड के जंगल से अब सागौन की विदाई होने वाली है। वन प्रभाग तराई पूर्वी, तराई पश्चिमी, तराई केंद्रीय, हल्द्वानी, रामनगर और नैनीताल में फैले सागौन के विशाल जंगल को हटाने की कवायद तेज कर दी जा चुकी है। वर्किंग प्लान में इसे शामिल किया गया तो कटान भी तेज है। वन निगम के डिपो सागौन से भर गए हैं। हर डिपो में कुल लकड़ी का दो तिहाई सागौन है। अब सागौन की जगह मिश्रित पौधों का जंगल बनेगा जो वन्य जीव के पुनर्जीवन का बड़ा संकेत भी होगा।
रामनगर से टनकपुर तक तकरीबन पौने दो सौ किलोमीटर के क्षेत्र में फैले वन विभाग के पश्चिमी वृत्त में शामिल हल्द्वानी, तराई पूर्वी, तराई पश्चिमी, तराई केंद्रीय और रामनगर क्षेत्र के हजारों हेक्टेयर क्षेत्रफल में सागौन के जंगल हैं। 40 से 60 साल पहले लगे ये पौधे अब विशाल जंगल बन चुके हैं। वन्य जीव के जीवन,क्लाईमेंट, जल मिश्रित पौधों के लिए वरदान की जगह श्राप बना यह जंगल आने वाले समय में गायब होगा। एक बार फिर से सरकार ने मिश्रित वन की दिशा में कदम बढ़ा दिया है। मधुमक्खी से लेकर हिरन और हाथी से लेकर चींटी तक के जीवन चक्र को मिश्रित वन ही जीवन देता रहा है। वन विशेषज्ञों की मानें तो सागौन हटने से इन जीवों को नया जीवन मिलेगा। चूंकि सागौन मुख्य रूप से मध्य प्रदेश तथा दक्षिण भारत का पौधा था। उत्तराखंड के वन का यह हिस्सा भी नहीं था। यह आय का बड़ा साधन तो था लेकिन इसके जंगल की खासियत थी कि यहां कोई और पौधा नहीं पनपता था। सो, यह वरदान नहीं श्राप बन गया।
जंगल का सही मतलब मिश्रित वन ही है। कुछ दशक पहले सागौन को आय के लिहाज से गढ़वाल से कुमाऊं तक लगाया तो गया लेकिन इससे नुकसान का आंकलन करने में चूक हुई। बॉयोलाजिकल डायवर्सिटी प्रभावित हुआ। सागौन से वन खेत बन गए। ठीक वैसे जैसे गेहूं की एक फसल हाेती है। लगाइए और काटिए। मिश्रित वन में पानी बनता है, तापमान नियंत्रित होता है पर सागौन के जंगल में नहीं। इन जंगलों में चिड़िया के घोसले नहीं दिखेंगे। मधुमक्खी नहीं दिखेगी। हिरन घूमता आ गया तो दिखेगा लेकिन रूकेगा नहीं। कार्य योजना अच्छी है लेकिन सुझाव भी है कि मिश्रित पौधे को लगाने से बहेतर है उनके बीज लगाए। कार्य कठिन है लेकिन आने वाले समय में जंगल का सही कांसेप्ट सामने आएगा। -श्रीकांत चंदोला, वन विशेषज्ञ
सागौन के पत्ते वन्य जीव के लिए उपयोगी नहीं माना जाता है। इसके अलावा इसके जंगल में अन्य पौधे भी नहीं उग पाते हैं। वर्किंग प्लान के तहत अब सागौन के जंगल की जगह मिश्रित पेड़ लगेंगे। सागौन का कटान तेज है। हर डिपो में सागौन की लकड़ियां लगभग दो तिहाई हैं। वर्ष 2020 से वन निगम की नीलामी में सागौन के बिकने की दर सबसे ज्यादा रही है। कुल आय में इसका हिस्सा सबसे ज्यादा रहा है। -उपेंद्र बर्तवाल, डीएलएम वन विकास निगम हल्द्वानी
तराई में ही कई हजार हेक्टेयर में इसका जंगल है। रामनगर, कालाढूंगी, पूर्वी, पश्चिमी और टनकपुर तक इसका दायरा है। सागौन के जंगल की भरपाई मिश्रित पेड़ों के जंगल करेंगे। इसमें रोहिणी, हल्दू, जामुन, सेमल और साल प्रमुख हैं। इन पेड़ों की पत्तियों को जानवर पसंद करते हैं। मिश्रित पेड़ों के जंगलों में पानी भी मिल जाता है। इससे जानवर की आवाजाही बढ़ती है। प्रकृति के संरक्षण में इनकी उपयोगिता होगी। -हिमांशु बागरी, डीएफओ तराई पूर्वी
वित्तीय वर्ष वन निगम की आय
2020- 2021 87 करोड़
2021- 2022 240 करोड़
2022 – 2023 274 करोड़
2023 – 2024 191 करोड़
2024 – 2025 213 करोड़
2025 -2026 25 करोड़
हरीश रावत ने अपनी किताब में बयां किया है सागौन से नुकसान का दर्द
हाल ही में प्रकाशित किताब मेरा जीवन लक्ष्य उत्तराखंडियत के लेखक पूर्व सीएम हरीश रावत ने भी सागौन का उल्लेख किया है। उन्होंने पेज नंबर 173 पर लिखा है कि उत्तराखंड के जंगल में दो दादा घुस आए हैं। चीड़ रूपी दादा अंग्रेज लाए और सागौन हमारे समझदार लोग। दोनों मिश्रित वन के दुश्मन हैं। चीड़ ने बांज, बुरांस, काफल और जंगली झाड़ियां निपटाई। इनकी पत्तियों से ही आग लग रही है। इनसे जंगल की जैव विविधिता नष्ट हो जाएगी। सागौन व यूकेलिप्टिस के जंगल में शीशम, खैर, आम, हल्दू, आंवला, बांस स्वाभाविक रूप से गायब हो रही हैं। इनकी पत्तियां गिरकर सूखते हैं और आग फैलने का कारण बनते हैं। नहीं चेतें तो उत्तराखंड के मिश्रित वन समाप्त हो जाएंगे।