Himachal देश का पहला ‘हरित राज्य’ बनने की और अग्रसर, Green Energy व ई-वाहनाें को दी जा रही प्राथमिकता

हिमाचल प्रदेश को देश का पहला हरित राज्य बनने की और अग्रसर है और इसके लिए हर विभाग को ई वाहनों के प्रयोग के साथ पथ परिवहन निगम के बेडे में इलेक्ट्रिक बसों को शामिल किया जा रहा है। इसके अलावा सरकार ने अपनी उर्जा नीति में बदलाव करते हुए राज्य के लिए आर्थिक योगदान को और बेहतर करने की व्यवस्था भी की है। Green State Himachal: हिमाचल प्रदेश को देश का पहला हरित राज्य बनाने के लिए हर विभाग को ई वाहनों के प्रयोग के साथ पथ परिवहन निगम के बेडे में इलेक्ट्रिक बसों को शामिल किया जा रहा है। यही नहीं हिमाचल का परिवहन विभाग देश का पहला सरकारी विभाग है जो पूरी तरह से ई-वाहनों का उपयोग कर रहा है।
अब तो प्रदेश सरकार ने ई-टैक्सी, ई-बस व ई-ट्रक को खरीदने के लिए 50 प्रतिशत के अनुदान का प्रावधान किया है। ये कदम हिमाचल को देश का हरित राज्य बनाने की दिशा में अग्रसर हो रहे हैं। प्रदेश की आर्थिकी में सबसे बड़ा योगदान आबकारी एवं कराधान से आने वाली आय यानी राजस्व जो 3500 करोड़ का योगदान है। जबकि इसके बाद उर्जा क्षेत्र दूसरे नंबर पर है जिससे करीब 1800 करोड़ के राजस्व का योगदान है।
हिमाचल का उर्जा क्षेत्र होगा और सुदृढ़
प्रदेश में पनविद्युत उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं। अभी तक 11210 मेगावाट पनविद्युत उत्पादन हो रहा है जबकि प्रदेश में 27446 मेगावाट की संभावना है। ऐसे में हिमाचल की आर्थिकी को ऊर्जा क्षेत्र और अधिक सुदृढ़ कर सकता है। यही कारण है कि वर्तमान सरकार ने अपनी उर्जा नीति में बदलाव करते हुए राज्य के लिए आर्थिक योगदान को और बेहतर करे ये व्यवस्था की है।
जिसके तहत अब 12 वर्ष तक कुल उत्पादन का 12 प्रतिशत, 12 से 18 वर्ष तक 18 और उसके बाद कुल उत्पादन का तीस प्रतिशत बिजली सरकार को प्रदान करने का प्रावधान किया है। यही नहीं चालीस वर्षों के बाद पनविद्युत परियोजना सरकार की होगी। ये उर्जा नीति सरकार की आर्थिकी को बेहतर करेगी।
विद्युत परियोजनाओं पर लगाया वॉटर सैस
इसके अलावा सरकार ने अपनी आय को बढ़ाने के लिए पन विद्युत परियोजनाओं पर वॉटर सैस लगाया है। इससे सालाना 1500 से 1800 करोड़ की आय होने का अनुमान है। इस मामले को लेकर विद्युत कंपनियां न्यायालय में है।
हालांकि सरकार दलील दे रही है कि उत्तराखंड और जम्मू कश्मीर वाटर सैस ले रहे हैं। ऐसे में वाटर सैस लेने का मामला अभी खटाई में है केवल सरकार के उपक्रमों से वाटर सैस आ रहा है।
सड़क रेल व हवाई सेवाओं की कमी औद्योगीकरण की राह में रोड़ा
हिमाचल प्रदेश का बद्दी दवा उद्योग में एशिया का सबसे बडा हब है। ये अलग बात है कि सड़क, रेल और हवाई सेवाओं की कमी औद्योगिकीकरण की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है। पहाड़ी राज्य होने के कारण यहां पर आवाजाही और कच्चा माल अन्य राज्यों से आता है।
ऐसे में उसकी लागत बहुत अधिक हो जाती है और ऐसे में बड़ी कंपनियां उद्योगों को स्थापित करने से अपने हाथ पीछे खींच देती है। हवाई सेवाओं के नाम पर केवल तीन एयरपोर्ट कांगड़ा, कुल्लू और शिमला शामिल है। यहां पर भी उड़ाने बहुत कम है। जबकि रेल यातायात की स्थिति अभी भी बेहतर नहीं है।
छोटी सड़कों के कारण लगता है जाम
वहीं सडकों के कम चौडा होने के कारण समय अधिक लग जाता है। उद्योग ही नहीं पर्यटन भी प्रभावित हो रहा है। हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्य के लिए फोर लेन खतरनाक साबित हो रही हैं और इसे अनुपयुक्त पाया गया है।
जबकि इसके स्थान पर टनल और रोप-वे सबसे बेहतर विकल्प हो सकता है। जिसकी दिशा में अब प्रयास भी हो रहे हैं। यही नहीं हवाई सेवाओं को विस्तार देने के साथ रेलवे को विस्तार देनी की आवश्यकता है जो औद्योगिकीकरण और पर्यटन कारोबार को पंख लगा सकता है।
बढ़ रहा है नशा
देवभूमि हिमाचल के युवक और युवतियां नशे की गर्त और चिट्टे की चपेट में हैं। उड़ता पंजाब के बाद स्थिति ऐसी आ रही है जो उड़ता हिमाचल बनने वाली हैं। ये सब पुलिस की क्राइम फाइल में दर्ज होने वाले मामलों और आंकडों से बयां हो रही है। नशे की चपेट में युवाओं के आने से प्रदेश का भविष्य गर्त में जा रहा है।
ये बात सामने आई है कि पड़ोसी राज्यों के माफियाओं व आपूर्ति करने वालों का इसमें योगदान है। ये सब खुलासा पुलिस और नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की जांच के दौरान सामने आया है। ये अलग बात है कि अन्य राज्यों के कम ही पुलिस के हत्थे चढ़े हैं।