International Museum Day: 71 साल के चंडीगढ़ के संग्रहालयों में सैकड़ों साल पुरानी चीजें संग्रहित
International Museum Day: 71 साल के चंडीगढ़ के संग्रहालयों में सैकड़ों साल पुरानी चीजें संग्रहित, जानिए खासियत
मानवों के पृथ्वी में आने से पहले पृथ्वी कैसी थी, उनसे पहले कौन से जीव धरती पर रहा करते थे। जंगलों में रहने पर मानव किस तरह के औजार इस्तेमाल किया करते थे इन सब सवालों के जवाब सेक्टर-10 स्थित नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम बखूबी देता है जो चार भागों में विभाजित है।
चंडीगढ़ को अस्तित्व में आए 71 साल हुए हैं, लेकिन अपनी समकालीन युग की खूबसूरत इमारतों में सैकड़ों साल पुराने चीजों को सहेजे हुए हैं। शहर के नौ संग्रहालयों में कहीं मानव के अस्तित्व में आने से पूर्व 28 मिलियन साल पुराने मैमथ हाथी के अवशेष हैं तो कहीं डायनासोर के अंडे, कहीं दूसरी शताब्दी में महात्मा बुद्ध को पहली बार मानवीय रूप में दिखाने वाली मूर्तियां सुशोभित हैं तो कहीं 1857 से लेकर 1947 तक का आजादी के आंदोलन का संघर्ष तो कहीं भगत सिंह की हाथों में लगी हथकड़ियां।
1973 में शुरू हुई चंडीगढ़ म्यूजियम एंड आर्ट गैलरी
1973 में शुरू हुए चंडीगढ़ म्यूजियम एंड आर्ट गैलरी सेक्टर-10 की बिल्डिंग को ली कार्बुजिए ने डिजाइन किया था जो देश के विभाजन के बाद अस्तित्व में आया। देश के बंटवारे से पूर्व सेंट्रल म्यूजियम लाहौर में सभी कीमती कलात्मक चीजें, मूर्तियां, चित्रकला आदि संग्रहीत थे। देश बंटने के बाद 1948 में सेंट्रल म्यूजियम की चीजों का भी बंटवारा हुआ, जिनमें मुख्य रूप से गांधार कला और मिनिएच चित्रकला शामिल थे।
भारत को मिली 40 प्रतिशत चीजों में से अधिकतर गांधार कला की मूर्तियां और मिनिएचर चित्र चंडीगढ़ म्यूजियम में शोभायमान है। इसमें दूसरी शताब्दी एडी से गांधार कला में बनी महात्मा बुद्ध की मूर्तियां, 16वीं से 18 शताब्दी के मिनिएचर पेंटिंग और समकालीन युग से राजा रवि वर्मा, एमएफ हुसैन, सतीश गुज्राल, एसडी थक्कर आदि कलाकारों के चित्र शामिल हैं। संग्रहालय में विभिन्न चित्रकलाओं को लाने में डॉ. एमएस रंधावा का विशेष योगदान रहा।
नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम सेक्टर 10, 1973 में शुरू
मानवों के पृथ्वी में आने से पहले पृथ्वी कैसी थी, उनसे पहले कौन से जीव धरती पर रहा करते थे। जंगलों में रहने पर मानव किस तरह के औजार इस्तेमाल किया करते थे इन सब सवालों के जवाब सेक्टर-10 स्थित नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम बखूबी देता है जो चार भागों में विभाजित है। 1973 में खुले संग्रहालय को शुरु करने के पीछे चंडीगढ़ के पहले मुख्य आयुक्त डॉ. एमएस रंधावा का विशेष योगदान रहा।
संग्रहालय में प्रवेश करते ही मसोल उत्खनन से मिली 26 लाख साल पुरानी चीजों से वास्ता होता है, जिनमें हाथी के दांत, जिराफ, मगरमच्छ आदि जीवों के अवशेष रखे गए हैं। 2016 में मसोल उत्खनन से बनाए इस नए भाग का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और फ्रेंच प्रेजिडेंट द्वारा किया गया था। मसोल उत्खनन से आगे बढ़ते अगला भाग साइकलोरामा का है जहां मानव जीवन के विकास की कहानी को दर्शाया है। पहले फ्लोर पर प्रवेश करते ही संग्रहालय लाखों साल पहले के युग में ले चलता है, जिसमें डायनासोर, मैमथ हाथी और अन्य जीवों से राबता होता है। इसी फ्लोर पर मांसभक्षी और शाकाहारी डायनासोर के अंडे रखे गए हैं। साथ ही ट्रायगॉन मछली, मेंढक आदि डायनासोर के समय के समुद्री जीव प्रदर्शित हैं। इनमें महाराष्ट्र के गांव पिस्डूरा गांव से मिले कॉर्पोलाइट अर्थात् डायनासोर और मगरमच्छ के गोबर को रखा गया है।
1997 में शुरू हुई चंडीगढ़ आर्किटेक्चर म्यूजियम
भारत में कम ही ऐसे शहर हैं जहां उनके विकास की कहानी को संग्रहालय में संरक्षित किया है। इनमें से एक चंडीगढ़ है। सेक्टर-10 स्थित चंडीगढ़ आर्किटेक्ट म्यूजियम में शहर को बनाने वाले, उससे जुड़े महत्वपूर्ण दस्तावेज, आइडिया और डिजाइन को प्रदर्शित किया है। 1997 में संग्रहालय को अस्तित्व में लाने के पीछे आर्किटेक्ट एसडी शर्मा का विशेष योगदान रहा। एसडी शर्मा ने ली कार्बुजिए की डिजाइन की स्विटजरलैंड में बनाई हाईडी वेबर बिल्डिंग के आधार पर संग्रहालय की बिल्डिंग को डिजाइन किया। आर्ट म्यूजियम बनाने के वक्त कार्बुजिए की मृत्यु हो गई थी, जिसके बाद आर्किटेक्ट म्यूजियम की बिल्डिंग एसडी शर्मा ने डिजाइन की। म्यूजियम बनने से पूर्व बिल्डिंग में पहले अर्बन डिजाइन का दफ्तर हुआ करता था।
1985 में शुरू हुआ इंटरनेशनल डॉल म्यूजियम-सेक्टर 23
सेक्टर-23 स्थित इंटरनेशनल डॉल म्यूजियम की स्थापना 1985 में हुई। इसमें 30 देशों और भारत जनजातीय और विभिन्न राज्यों की संस्कृति को प्रदर्शित करती 350-400 के करीब डॉल प्रदर्शित हैं। विभिन्न संस्कृतियों का नेतृत्व करतीं यह डॉल न केवल वहां की वेशभूषा को दिखाती हैं बल्कि लोगों की कहानियां भी बताती हैं। बचपन में पढ़ी सिंड्रेला, स्नो वाइट, अली बाबा और चालीस चोर, अलाहदिन आदि की कहानियों को संग्रहालय में दिखाया है। साउथ कोरिया, जापान, इंडोनेशिया, इटली, जर्मनी, साउथ अफ्रीका, अर्जेंटीना आदि अधिकतर देशों से डॉल उनके दूतावास द्वारा दी गई हैं तो कुछ लोगों द्वारा खुद दान की है। संग्रहालय में संथाल, नागा, बंजारन, तोडा आदि जनजातियों की डॉल हैं।
सेक्टर- 17 स्थित नेशनल गैलरी ऑफ पोर्टरे, 1977 में शुरू
सेक्टर-17 स्थित नेशनल गैलरी ऑफ पोर्टरे को 1977 में शुरू किया गया। संग्रहालय में 1857 से लेकर 1947 में आजादी पाने के समय तक उसके लिए 200 वर्षों में किए संघर्ष की कहानी को दर्शाता है। विभिन्न चित्र, मूर्तियां, कंप्यूटर जनरेटिड इमेज के जरिए आजादी के पूर्व मंजर को संग्राहलय ने जीवित किया है।
पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट म्यूजियम, सेक्टर एक, 2006 में शुरू
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के कानूनी सफर को संग्रहालय ने बखूबी पेश किया है जिसमें संविधान की प्रति से लेकर उच्च न्यायालय के विकास से जुड़ी कहानियां दिखाई गई हैं। 2016 में शुरू हुए म्यूजियम में भगत सिंह को पहनाई गई हथकड़ियां भी संग्रहीत है। लोगों को न्यायालय का अनुभव देने के लिए कोर्ट का सेटअप बनाया गया है।
2017 में शुरु हुआ था पीयरे जेनरे म्यूजियम सेक्टर- 5
ली कार्बुजिए के शहर के प्लान को वास्तविकता में लाने वाले आर्किटेक्ट पीयरे जेनरे के घर को उनके सम्मान में म्यूजियम में तबदील किया है। 11 साल शहर को उसकी रूपरेखा देने वाले व कई बिल्डिंग डिजाइन करने वाले जेनरे सेक्टर पांच के हाउस नंबर 57 में रहा करते थे। उनके शहर में किए योगदान को म्यूजियम में दर्शाया है फिर चाहे वह उनकी डिजाइन की लाखों में बिकने वाली चेयर हो या स्कूल, एमएलए घरों की दीवारों पर बनाए डिजाइन यह सब भूतल मंजिल में बने संग्रहालय में प्रदर्शित है।
ली कार्बुजिए सेंटर सेक्टर-19
पुरानी आर्किटेक्ट दफ्तर की बिल्डिंग शहर में बनाई सबसे पुरानी इमारतों में से एक है। इसे अभी ली कार्बुजिए सेंटर के नाम से जाना जाता है। इसी बिल्डिंग से ली कार्बुजिए ने शहर के निर्माण में कार्य किया था। म्यूजियम में कार्बुजिए के शहर को प्लान करने, लोगों के अनुकूल कम बजट में घर बनाने, ग्रीन आर्किटेक्ट आदि आइडिया को चित्र, चित्रकला, दस्तावेज, पत्र आदि चीजों के जरिए दर्शाया है।
2017 में रॉक गार्डन म्यूजियम सेक्टर-1 शुरू
सेक्टर-एक स्थित नेक चंद के बनाए रॉक गार्डन के भीतर 2017 में रैग डॉल म्यूजियम बनाया गया है। संग्रहालय चंडीगढ़ के मॉडर्न शहर से पूर्व उसके गांव के जीवन की झलकियां देता है जहां महिला घर के आंगन में काम करती, पशु को चारा देती दिखती है। संग्रहालय से गुजरते हुए गांव के सादा जीवन का अहसास होता है।