उत्तराखंड में यह सीट बनी थी कांग्रेस का गढ़, पर पिछले दो चुनावों से हिलने लगा सियासी किला; क्या इस बार भाजपा..
वर्ष 2014 से भाजपा ने नैनीताल सीट पर मजबूत पकड़ बना ली है। पहले भगत सिंह कोश्यारी और फिर अजय भट्ट इस सीट से संसद पहुंचे। भाजपा ने एक बार फिर अजय भट्ट को ही प्रत्याशी बना दिया है। यह सीट कांग्रेस की गढ़ बन गई थी। अब तक के चुनावों में 11 बार कांग्रेस और चार बार भाजपा के प्रत्याशी यहां से संसद पहुंचे हैं। हल्द्वानी। नैनीताल-ऊधम सिंह नगर लोकसभा सीट का जिस तरह का भिन्न भूगोल है, वैसा ही जटिल राजनीतिक इतिहास भी। तराई, भाबर व पर्वतीय क्षेत्र में शामिल यह सीट भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत व उनके परिवार की कर्मस्थली रही है। महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंत ने भले ही इस सीट से चुनाव न लड़ा हो, लेकिन पांच चुनावों तक उनका ही प्रभाव व्यापक रूप से रहा।यही कारण था कि यह सीट कांग्रेस की गढ़ बन गई। अब तक के चुनावों में 11 बार कांग्रेस और चार बार भाजपा के प्रत्याशी यहां से संसद पहुंचे हैं। आजादी के बाद वर्ष 1951 में पहला लोकसभा चुनाव हुआ। पंडित गोविंद बल्लभ पंत के दामाद सीडी पांडे नैनीताल-ऊधम सिंह नगर सीट से चुनावी मैदान में उतरे और विजय हासिल की।
लगातार दो बार वह इसी सीट से संसद पहुंचे। तीसरे चुनाव में पंत के पुत्र केसी पंत ने पर्चा भरा और अपनी इस परंपरागत एवं मजबूत सीट से जीत की हैट्रिक लगाई। पंत परिवार का विजय रथ 1977 में थम गया। उस समय भारतीय लोक दल से भारत भूषण ने चुनाव लड़ा था और कांग्रेस के गढ़ में सेंध लगा दी थी। भूषण की यह जीत पंत परिवार के लिए बड़ा झटका और वर्चस्व टूटने जैसा था।
1980 के संसदीय चुनाव में एक बार फिर राजनीति के ऊंट ने करवट बदल ली। राष्ट्रीय राजनीति में परचम लहरा रहे वरिष्ठ नेता नारायण दत्त तिवारी ने इस सीट से भाग्य आजमाया और शानदार जीत हासिल की। राजनीति में उनका कद और ऊंचा हो गया। इसके बाद 1984 के चुनाव में कांग्रेस के सत्येंद्र गुड़िया चुनाव जीते। इन्हें तिवारी का ही करीबी माना जाता था। इस चुनाव के बाद से ही इस सीट पर चुनावी समीकरण बदलते गए।
पिछले दो चुनावों से भाजपा ने बना ली मजबूत पकड़
वर्ष 2014 से भाजपा ने इस सीट पर मजबूत पकड़ बना ली है। पहले भगत सिंह कोश्यारी और फिर अजय भट्ट इस सीट से संसद पहुंचे। भाजपा ने एक बार फिर अजय भट्ट को ही प्रत्याशी बना दिया है।
जब जनता दल के महेंद्र और भाजपा के पासी ने मारी बाजी
समय के साथ धीरे-धीरे कांग्रेस का मजबूत सियासी किला हिलने लगा था। वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी चुनावी बाजी हार गए और जीते जनता दल के डा. महेंद्र पाल। इसके बाद वर्ष 1991 का चुनाव और भी रोमांचक एवं चौंकाने वाला रहा।
बलराज पासी भाजपा के नए चेहरे थे और उनके सामने थे कांग्रेस के दिग्गज नेता एनडी तिवारी। इस चुनाव में तिवारी को अप्रत्याशित हार का सामना करना पड़ा था। देश की राजनीति के लिहाज से यह बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम था। क्योंकि तब कहा जा रहा था कि एनडी प्रधानमंत्री बन सकते हैं।
इला पंत ने भाजपा से लड़ा चुनाव और जीत गईं
वर्ष 1998 में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे केसी पंत की पत्नी इला पंत ने भाजपा प्रत्याशी के रूप में इस सीट से चुनाव लड़ा। अपनी विशेष चुनाव रणनीति की वजह से वह जीत भी गईं। तब लगने लगा कि कांग्रेस का गढ़ कमजोर हो गया है, लेकिन कांग्रेस प्रत्याशी रहे एनडी तिवारी व डा. महेंद्र पाल के बाद 2009 तक केसी सिंह बाबा ने कांग्रेस के गढ़ को बचाए रखा।