इसरो ने छोड़ी अमिट छाप, चंद्रयान की सफलता वैश्विक मंच पर भारत को आदर्श के रूप में करेगी स्थापित

इसरो ने छोड़ी अमिट छाप, चंद्रयान की सफलता वैश्विक मंच पर भारत को आदर्श के रूप में करेगी स्थापित
भारत का लक्ष्य है कि वर्ष 2030 तक वैश्विक अंतरिक्ष आर्थिकी में नौ प्रतिशत की हिस्सेदारी हासिल करे। चंद्रयान-3 की सफलता इसमें सहायक सिद्ध होगी। यह मिशन वैश्विक अंतरिक्ष मानचित्र पर भारत की क्षमताओं में एक नया आत्मविश्वास उत्पन्न करेगा। इसरो का किफायती लेकिन प्रभावी दृष्टिकोण दुनिया भर में प्रशंसित है। चंद्रयान-3 जैसे मिशन अपने अनुमानित दायरे से कहीं अधिक प्रभाव छोड़ते हैं।
बुधवार की शाम करोड़ों भारतीयों एवं भारतप्रेमियों की सांसें अटकी हुई थीं। इसरो के लैंडर का चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की सतह पर स्पर्श होते ही लोगों ने राहत की सांस ली और उत्साह के साथ इस उपलब्धि के आनंद में डूब गए। इस उपलब्धि की गूंज न केवल भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान के पवित्र मंदिर में सुनी गई, बल्कि पूरे विश्व ने संसार में पहली बार भारत को मिली इस अद्भुत सफलता पर उसका नमन-अभिनंदन किया। लैंडर विक्रम के चंद्रमा की सतह पर उतरने के साथ ही अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में नए ऐतिहासिक अध्याय का आरंभ हुआ। विक्रम की सक्रियता के साथ रोवर प्रज्ञान ने भी अपना कार्य करना शुरू कर दिया। इसरो के इस अभियान ने अंतरिक्ष अनुसंधान पर अपनी ऐसी अमिट छाप छोड़ी है, जो मिटाए नहीं मिट सकेगी।
वास्तव में, चंद्रयान-3 के माध्यम से दक्षिणी ध्रुव पर विजयी लैंडिंग तक की यात्रा मानवीय नवाचार और अटल समर्पण का एक अनुपम उदाहरण है। इसका पूरा श्रेय भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो के उस परिवेश को जाता है, जहां ऐसी आकांक्षाओं को संकल्प के पंख लगे। स्मरण रहे कि 1976 से पहले रूस के 24 लूना मिशनों में साफ्ट लैंडिंग सफलता दर लगभग 20 प्रतिशत थी। उस हिसाब से इसरो की सफलता को सहज ही समझा जा सकता है। इसरो की सफलता न केवल चंद्रमा से जुड़े अन्वेषण को नया आयाम देगी, बल्कि वहां स्थायी मानव बस्तियों की बसावट का सपना भी दिखा सकती है।
चंद्रयान-3 की सफलता का महत्व वैज्ञानिक उपलब्धि की सीमा से कहीं आगे है। इसमें साफ्ट पावर के विस्तार की भी अपार क्षमता है। यह भारत को वैश्विक मंच पर एक उज्ज्वल एवं प्रेरक पात्र के रूप में प्रस्तुत करती है। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सबसे पहले उतरने वाले देश के रूप में भारत ने अपनी तकनीकी दक्षता और अन्वेषण के प्रति प्रतिबद्धता का प्रदर्शन किया है। यह उपलब्धि भारत को उन विशिष्ट देशों की पांत में खड़ा करती है जो अपनी दूरदर्शिता से आकांक्षाओं को वास्तविकताओं में परिवर्तित करने की क्षमता रखते हैं। इसरो की यह सफलता विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारत को सिरमौर बनाने के साथ ही अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में देश के लिए नई संभावनाओं के द्वार खोलने वाली है।
भारत का लक्ष्य है कि वर्ष 2030 तक वैश्विक अंतरिक्ष आर्थिकी में नौ प्रतिशत की हिस्सेदारी हासिल करे। चंद्रयान-3 की सफलता इसमें सहायक सिद्ध होगी। यह मिशन वैश्विक अंतरिक्ष मानचित्र पर भारत की क्षमताओं में एक नया आत्मविश्वास उत्पन्न करेगा। इसरो का किफायती, लेकिन प्रभावी दृष्टिकोण दुनिया भर में प्रशंसित है। चंद्रयान-3 जैसे मिशन अपने अनुमानित दायरे से कहीं अधिक प्रभाव छोड़ते हैं। यह संसाधन कुशलता और नवाचार का जीवंत प्रमाण है। इससे इसरो और भारत की अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्यता भी बढ़ी है। विभिन्न वैश्विक संस्थान इसरो के साथ काम करने के लिए उत्सुक हैं। जैसे जापान के जाक्सा को अपने ल्युपेक्स मिशन में भी भारत के विक्रम की मदद महसूस हो रही है।