Himachal:मंडी में खाली हो गए गांव, लोग बेघर

Published by: Megha Jain
Updated Tue, 29 Aug 2023 11:45 AM
मंडी के गोहर के छपराहन गांव के 53 परिवार आलीशान व पुश्तैनी घर छोड़ पिछले दो सप्ताह से टेंटों में हैं। बच्चे रोज टेंट से स्कूल जा रहे हैं। बड़े लोग रोजी-मजदूरी की खोज में निकल जाते हैं।
आपदा ने मंडी या कुल्लू जिले को ही नहीं, पूरे हिमाचल प्रदेश को झकझोर दिया है। हजारों लोग अब भी राहत शिविरों, टेंट या अपने रिश्तेदारों की शरण में हैं। मंडी के गोहर के छपराहन गांव के 53 परिवार आलीशान व पुश्तैनी घर छोड़ पिछले दो सप्ताह से टेंटों में हैं। बच्चे रोज टेंट से स्कूल जा रहे हैं। बड़े लोग रोजी-मजदूरी की खोज में निकल जाते हैं। खेती-बागवानी उजड़ गई है। 1800 परिवार अब भी बेघर हैं। 14 अगस्त को ऐसी तबाही आई कि इनकी आंखों से अभी तक आंसू नहीं थम रहे हैं। गांव के 36 घरों में जगह-जगह दरारें पड़ी हैं। 44 गोशालाएं भी क्षतिग्रस्त हैं। पंचायत प्रधान छपराहन दिनेश कुमार ने बताया कि बरसात में टेंट में बच्चों-महिलाओं का रहना आसान नहीं। आपदा ने गहरे जख्म दिए हैं।
मंडी के थलौट की तरह थर्रा गए कई गांव
मंडी के थलौट गांव के लोग आपदा से नहीं, विकास के नाम पर टनल के लिए खोदी पहाड़ी के कारण बेघर हुए। मॉडनार्च टनल को बनाने एनएचएआई की ओर से की गई कटिंग के बाद पहाड़ी रोजाना धंस रही है। बरसात ने रफ्तार बढ़ा दी है। यहां पर 50 परिवारों के घर हैं। खतरे को भांप अब लोग स्वयं ही अपने घरों को छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर चले गए हैं। वापसी की आस छोड़ दी। गांव की जमीन में एक फुट तक की दरारें आ चुकी हैं। 40 मकान, 16 गोशालाएं, 3 मंदिर व एक सराय खतरे की जद में हैं। सामान निकालने भी नहीं जा पा रहे। पंचायत समिति सदस्य बलदेव ठाकुर, ग्रामीण गोविंद राम, भगतराम, ज्ञानचंद, घनश्याम, निर्मला, इंदिरा देवी व अन्य लोगों ने कहा कि उनकी सुनने वाला कोई नहीं है। छपराहन गांव के लोगों का भी यही हाल है। 58 साल के वेदराम, कुंता देवी, देवी सिंह, तेज सिंह व अन्य लोगों ने कहा कि घरों में दरारें पड़ते ही वे सुरक्षित जगहों पर निकल गए। पता नहीं कितने और दिन यहां रहना पड़ेगा। घर बार का कुछ नहीं पता। रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है। मंडी के बल्ह के गांवों के लोगों का भी यही हाल है।
पिट गया सेब और पर्यटन का कारोबार
भारी बारिश और मानसून से हुई तबाही से हिमाचल प्रदेश में बागवानी व पर्यटन कारोबार बुरी तरह से पिट गया है। प्रदेश में सेब बागवानी का सालाना 5,000 करोड़ रुपये का कारोबार होता है। इस बार यह आधे में ही सिमट जाएगा। पर्यटन कारोबार को भी भारी नुकसान हुआ है। दो माह के भीतर करीब 600 करोड़ का नुकसान हो चुका है। कालका-शिमला हाईवे चक्कीमोड़ के पास लंबे समय तक बंद रहने से पर्यटन और बागवानी को भारी नुकसान हुआ है। कुल्लू-मनाली में ब्यास के रौद्र रूप से भी पर्यटक यहां आने से गुरेज कर रहे हैं।